Alone Shayari in Hindi
दिन में हमें तितलियां सताती हैं,
और शम इस दिल को तन्हा कर जाती है..!!
फिर वही मौसम लौटा याद भरी पुरवाई भी,
ऐसा तो कम ही होता है वो भी हो तन्हाई भी..!!
जिंदगी ख्वाहिशों का एक मेला है,
कहीं पर हार तो कहीं पर जीत का ये खेला है,
जो भी मिले उससे तुम मुस्कुरा कर मिला करो,
इस भीड़ में हर कोई ही अकेला है..!!
वो जोश ए तन्हाई वो हर तरफ बेकसी का आलम,
कटी है आँखों में रात सारी तड़प तड़प कर सहर हुयी..!!
यूँ तो हर रंग का मौसम मुझसे वाकिफ है मगर,
रात की तन्हाई मुझे कुछ अलग ही जानती है..!!
जगमगाते शहर की रानाइयों में क्या न था,
ढूँढ़ने निकला था जिसको बस वही चेहरा न था,
हम वही तुम भी वही मौसम वही मंज़र वही,
फ़ासले बढ़ जायेंगे इतने मैंने कभी सोचा न था..!!
मेरी पलकों का अब नींद से कोई ताल्लुक नही रहा,
मेरा कौन है ये सोचने में रात गुज़र जाती है..!!
मोहब्बत मुकद्दर है कोई ख़्वाब नही,
ये वो अदा है जिसमें हर कोई कामयाब नही,
जिन्हें मिलती मंज़िल उंगलियों पे वो खुश है,
मगर जो पागल हुए उनका कोई हिसाब नही..!!
एक तुम्हीं थे जिसके दम पे चलती थी साँसें मेरी,
लौट आओ कि ज़िंदगी से वफ़ा निभाई नहीं जाती..!!
कितना भी किसी के लिए हँस के जी लें हम,
रुला देती है फिर भी उनकी कमी कभी कभी..!!
हर वक़्त का हँसना तुझे बर्बाद ना कर दे,
तन्हाई के लम्हों में कभी रो भी लिया कर..!!
तन्हाईयाँ कुछ इस तरह से डसने लगी मुझे,
मैं आज अपने पैरों की आहट से डर गया..!!
चलते-चलते अकेले अब थक गए हम,
जो मंज़िल को जाये वो डगर चाहिए,
तन्हाई का बोझ अब और उठता नहीं,
अब हमको भी एक हमसफ़र चाहिए..!!
तेरा पहलू तेरे दिल की तरह आबाद रहे,
तुझपे गुजरे न क़यामत शब ए तन्हाई की..!!
शायद इसी को कहते हैं मजबूरी ए हयात,
रुक सी गयी है उम्र ए गुरेजां तेरे बगैर..!!
यूँ भी हुआ रात को जब सब सो गए,
तन्हाई और मैं तेरी बातों में खो गए..!!
मोहब्बत मुकद्दर है कोई ख़्वाब नही,
ये वो अदा है जिसमें हर कोई कामयाब नही,
जिन्हें मिलती मंज़िल उंगलियों पे वो खुश है,
मगर जो पागल हुए उनका कोई हिसाब नही..!!
अगर ज़िन्दगी का जंग जीतना है,
तो अकेले चलना सीखना होगा..!!
तेरे बगैर इस मौसम में वो मजा कहाँ,
काँटों की तरह चुभती है बारिश की बूँदें..!!
साथ में जिसके एक दिन दुनिया चलता है,
वह शक्श अकसर शुरू में तन्हा चलता है..!!
वो इंसान दुनिया जीतने की हिम्मत रखता है,
जो इंसान अकेले चलने की हिम्मत रखता है..!!
मुझको मेरी तन्हाई से अब शिकायत नहीं है,
मैं पत्थर हूँ मुझे खुद से भी मोहब्बत नहीं है..!!
जब जब याद करोगी अपनी तन्हाईयो को,
एक जलता चराग सा नज़र आऊगा मैं,
राह से रहगुज़र बन के भी गुजर जाओगी,
एक मिल का पत्थर सा खड़ा नज़र आऊगा मैं..!!
एक तेरे ना होने से बदल जाता है सब कुछ,
कल धूप भी दीवार पे पूरी नहीं उतरी..!!
मेरी लिखी किताब मेरे हाथो में देकर कहने लगे,
इसे पढा करो मोहब्बत करना सिख जाओगे..!!
तुम जब आओगे तो खोया हुआ पाओगे मुझे,
मेरी तन्हाई में ख़्वाबों के सिवा कुछ भी नहीं,
मेरे कमरे को सजाने कि तमन्ना है तुम्हें,
मेरे कमरे में किताबों के सिवा कुछ भी नहीं..!!
वो सिलसिले वो शौक वो ग़ुरबत न रही,
फिर यूँ हुआ के दर्द में सिद्दत न रही,
अपनी जिंदगी में हो गये मशरूफ वो इतना,
कि हमको याद करने कि फुरसत न रही..!!
जिंदगी के ज़हर को यूँ हँस के पी रहे हैं,
तेरे प्यार बिना यूँ ही ज़िन्दगी जी रहे हैं,
अकेलेपन से तो अब डर नहीं लगता हमें,
तेरे जाने के बाद यूँ ही तन्हा जी रहे हैं..!!
आँखों ने ज़र्रे ज़र्रे पर सजदे लुटाये हैं,
न जाने जा छुपा है मेरा पर्दा नसीन कहाँ..!!
अजीब सी बेताबी रहती है तेरे बिना,
रह भी लेते हैं और रहा भी नहीं जाता..!!
तेरा बार बार रूठना मुझे अच्छा लगता है,
पर क्या तुझे भी मेरा मनाना अच्छा लगता है..!!
जगमगाते शहर की रानाइयों में क्या न था,
ढूँढ़ने निकला था जिसको बस वही चेहरा न था,
हम वही तुम भी वही मौसम वही मंज़र वही,
फ़ासले बढ़ जायेंगे इतने मैंने कभी सोचा न था..!!