Allama Iqbal Shayari

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Dr Allama Iqbal Shayari in Hindi

ख़ुदी को कर बुलंद इतना कि हर तक़दीर से पहले,
ख़ुदा बंदे से ख़ुद पूछे बता तेरी रज़ा क्या है..!!

माना कि तेरी दीद के क़ाबिल नहीं हूँ मैं,
तू मेरा शौक़ देख मिरा इंतज़ार देख..!!

हज़ारों साल नर्गिस अपनी बे नूरी पे रोती है,
बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदा वर पैदा..!!

दुनिया की महफ़िलों से उकता गया हूं या रब,
क्या लुत्फ़ अंजुमन का जब दिल ही बुझ गया हो..!!

फ़क़त निगाह से होता है फ़ैसला दिल का,
न हो निगाह में शोख़ी तो दिलबरी क्या है..!!

सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा,
हम बुलबुलें हैं इस की ये गुलसितां हमारा..!!

ढूंढ़ता फिरता हूं मैं इक़बाल अपने आप को,
आप ही गोया मुसाफ़िर आप ही मंज़िल हूं मैं..!!

मन की दौलत हाथ आती है तो फिर जाती नहीं,
तन की दौलत छाँव है आता है धन जाता है धन..!!

नशा पिला के गिराना तो सब को आता है,
मज़ा तो तब है कि गिरतों को थाम ले साक़ी..!!

दिल से जो बात निकलती है असर रखती है,
पर नहीं ताक़त ए परवाज़ मगर रखती है..!!

इस दौर की ज़ुल्मत में हर क़ल्ब इ परेशान को,
वो दाग़ इ मुहब्बत दे जो चाँद को शर्मा दे..!!

एक ही साफ में खड़े हो गए महमूद ओ अयाज़,
ना कोई बंदा रहा और ना कोई बंदा नवाज़..!!

औकात में रखना था जिसे,
गलती से दिल में रखा था उसे..!!

मस्जिद तो बना दी शब भर में ईमाँ की हरारत वालों ने,
मन अपना पुराना पापी है बरसों में नमाज़ी बन न सका..!!

अनोखी वजा हैं सारे ज़माने से निराले हैं,
ये आशिक़ कौन सी बस्ती के या रब रहने वाला हैं..!!

दियार इ इश्क़ में अपना मक़ाम पैदा कर,
नया ज़माना नई सुबह ओ शाम पैदा कर..!!

अपने मन में डूब कर पा जा सुराग़ इ ज़िंदगी,
तू अगर मेरा नहीं बनता न बन अपना तो बन..!!

नहीं तेरा नशेमनं कसर् ए शुलतानी के गुम्बद पर,
तू शाहीन बसेर कर पहाडों की चट्टानो में..!!

नहीं तेरा नशेमनं कसर् ए शुलतानी के गुम्बद पर,
तू शाहीन बसेर कर पहाडों की चट्टानो में..!!

हो मेरा काम ग़रीबो की हिमायत करना,
दर्दमंदों से ज़मीन से मोहब्बत करना..!!

हक़ीक़त खुराफात में खो गई,
ये उम्मत रिवायत में खो गई..!!

हम तो जीते हैं के तेरा नाम रहे ,
कहीं मुमकीन है के साक़ी न रहे और जाम रहे..!!

मजनूं ने शहर छोड़ा तो सहरा भी छोड़ दे,
नज़्जारो की हवस हो तो लैला भी छोड़ दे..!!

ये जन्नत मुबारक रहे जाहिदों को,
कि मैं आपका सामना चाहता हूं..!!

हुई ना आम जहां में कभी हुकूमत ए इश्क़,
सबब ये है कि मोहब्बत ज़माना साज नहीं..!!

अक्ल अय्यार है सौ भेस बदल लेती है,
इश्क बेचारा न ज़ाहिद है न मुल्ला ना हकीम..!!

बातिल से दबने वाले ऐ आसमां नहीं हम,
सौ बार कर चुका है तू इम्तिहां हमारा..!!

हया नहीं है ज़माने की आंख में बाक़ी,
ख़ुदा करे की जवानी तेरी रहे बे दाग़..!!

दिल से जो बात निकलती है असर रखती है,
पर नहीं ताकतें ऐ परवाज़ मगर रखतीं हैं..!!

गुलामी में ना काम आती है शमशीरें ना तकबीरे,
जो हो ज़ौक ऐ यक़ीं पैदा तो कट जाती है जंजीरें..!!

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